पैसा कमाना इतना, जरूरी हो गया ।
बेईमानी, रूह की, मज़बूरी हो गया ।
बाबुजी के बटुए पर, हम ऐश करते थे,
लाखों कमाना मेरा अब, मज़दूरी हो गया ।
पहले था बड़ा मुँहफट, मगर नौकरी मिली तो,
न जाने क्यों, मुझे भी, जी हुजूरी हो गया ।
लथपथ लहू से तिरंगे में, घर जो पहुँचा मैं,
माँ ने कहा, मेरे लाल तू, सिन्दूरी हो गया ।
उस रात वह मुझसे लिपटकर, इतना रोईं थी,
सुबह तक मेरा बदन, कस्तूरी हो गया ।