Wednesday, December 9, 2020

पैसा कमाना इतना जरूरी हो गया

 पैसा कमाना इतना, जरूरी हो गया ।

बेईमानी, रूह की, मज़बूरी हो गया ।

बाबुजी के बटुए पर, हम ऐश करते थे,

लाखों कमाना मेरा अब, मज़दूरी हो गया ।

पहले था बड़ा मुँहफट, मगर नौकरी मिली तो,

न जाने क्यों, मुझे भी, जी हुजूरी हो गया ।

लथपथ लहू से तिरंगे में, घर जो पहुँचा मैं,

माँ ने कहा, मेरे लाल तू, सिन्दूरी हो गया ।

उस रात वह मुझसे लिपटकर, इतना रोईं थी,

सुबह तक मेरा बदन, कस्तूरी हो गया ।

Tuesday, October 4, 2016

स्मृति - पत्र

उम्र भर की धूप को,

कैद सीने में किए।

कुछ अधूरी ख़्वाहिशों,
के फूल हाथ में लिए -
देखता हूँ मैं खड़ा -
ठंढ की इस रात को,
इस भींगती बरसात को।
याद आता है मुझे -
उस दिन भी तो, बरसात थी,
जब हृदय को रोक कर,
सम्पूर्ण शक्ति झोंक कर,
तुमने मुझसे कहा था -
फिर तुम्हारी आँख से,
मैं, नीर बनकर बहा था।
और हृदय की बेबसी,
अवरुद्ध कंठ में फंसी,
चुपचाप सिसकती रही,
निस्तब्धता की भीड़ में,
और हम, बंधे रहे,
कर्तव्य की जंजीर में।
कहाँ फिर कुछ शेष था -
सिक्त आँचल में तुम्हारे,
प्रेम का अवशेष था -
 
फिर कभी न, हम मिले,
जिस्म के, ज़र्रों तले,
रिसती रही, खामोशियाँ,
बनकर युगों की वेदना,
और मैं विक्षिप्त - सा,
संज्ञा - शून्य रिक्त सा,
दायित्व और अधिकार के,
द्वंद्व में लिपटा रहा।
इस जगत के सैकड़ों,
सम्बन्ध में सिमटा रहा।
मगर अभागा, यह हृदय,
तुम्हें नहीं भुला सका ।
न किसी का, हो सका ,
          न किसी को, पा सका ............